मृत्यु मुझे priya है...
एक सच्चे मित्र के रूप में..
स्वार्थी जीवन में.. निःस्वार्थ सहचर के रूप में..
पल-पल अनिश्चित इस सफ़र में ,
कम से कम मृत्यु तो निशचित है..
उसकी यही निश्चितता मुझे प्रिया है
इस सिमटी हुई दुनिया ,..में जहाँ कोई एक कदम भी साथ नही ...
चलता वहां अनंत यात्रा के ,...लिए मृत्यु एक निश्चल साथी ...
उसका यही निःस्वार्थ साहचर्य मुझे प्रिया है...
यहाँ बच्चे करते बटवारा माता पिता का ....
वहां मृत्यु पनाह देती हर प्राणी को...,
उसकी यही पनाह मुझे प्रिया है ..
जहाँ मैं पल में अशुरक्षित हूँ...
मन्दिर में.. मस्जिद में... गिरिजा में... यहाँ तक की माँ के गर्भ में भी....
वहां मृत्यु मुझे देती है, सुरक्षा चिरकाल तक....
इसिस्लिये मुझे वह प्रिया है..
मृत्यु मेरी प्रेयशी है ,.......
क्योंकि ----वो समाती है मुझे अपने आगोश में....
सुलाती है मुझे अपनी बाँहों में ....
हर पल एह्शाश है ...
सही ---है मार्ग भी दिखाती है ..
aour कई बार बिल्कुल करीब आकर लौट जाती है...
ओउर सताती है मुझे...
मेरी खुशी के लिए निर्धन एकांत करती है मेरा intjaar ...
bina कुछ शिकायत किए ..
ओउर अंत में अपनाती है मुझे ....
बिना किसिस शर्त के ...
बिना किसिस रश्म के....
बिना किसी रिवाज के .....
बिना किसिस बंधन के.....
इसिस्लिये मृत्यु मेरी प्रेयशी है...
इसिस्लिये मृत्यु मेरी प्रेयशी है .........
Copyright ©2008 vivek pandey
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