Friday, May 7, 2010

Jeevan Ek Sangharsh hai...


जीवन के इस पनघट पर 

मैं प्यासा कंठ लिए हूँ.. 


अंतर मे सागर उमड़ा है 

बातें गहरी से भी हैं गहरी 

अपनी व्यथा कहूँ तो किससे 

 कौन सुने जाग बहरा है...... 


पी-पीकर भी पानी मैं इतना 

सूखा कंठ लिए हूँ...... 


आज और कल करते करते 

मेरी बातें रही अनकही 

जब तक अपने शब्द बनाऊँ  

तब तक इक्षा के फूल मुरझाएँ ...... 


तेरी जीवन की इस धारा से  

कूछ बूदों का अरमान लिए हूँ ...... 


बैठे-बैठे सांझ हो गयी, 

फिर भी कंठ वही सूखा है 

आशा के पर भी उड़ ना पाये 

यह कैसी है मेरी मजबूरी...... 


 बिछूड़न के इस तट पर  

मैं अमर मिलन की आश् लिए हूँ...... 


पल -पल की ये गर्मी  लू 

मेरे कंठ भश्म कर जायें  

जीवन शांत करने को आतुर  

इस जाग की ये दुर्गम बाधाएँ...... 



जग व्यापी इस प्रलय कल मे 

मैं पूर्ण मिलन का गान लिए हूँ...... 



    उल्लू पांडे

Friday, March 19, 2010

My Reading List

l1. My startup life by ben casonocha.
2. The Conscience of A Liberal: paul Krugman.
3.The Great Unraveling: Paul Krugman
4. A Fine Family: Gurucharan Das
5.The Skillfull Teacher:Stephen Brookfield.
5.Managing A Non Profit Organization In The Twenty First Century:Thomas Wolf
6.Breaking The Glass Ceiling(Can Women Reach The America's Largest Corporation's):Ann M Morrision.
7.5 Temptations of a Leader By Geoff Flemming
8.W.Somerser MAUGHAM(Collected Short Stories)VOLUME 4
9.Hold the Press: The Inside Story on Newspapers:John Maxwell Hamilton.
10.THE MURROW BOYS:Stanley Cloud and Lynne Olson Houghton Mifflin
11. Motor Cycle Dairy.

Wednesday, March 11, 2009

Feelings.....


एह्शाश

नहीं जमीं मुठ्ठी भर तो क्या.. सपनों का आकाश बहुत है ,
उड़ पाऊं कभी न लेकिन पंखों का आकाश बहुत है ..
यूं तो जुड़ते ओउर बिछुड़ते हैं कई हमराह
मगर साथ चल रहा अब तक मेरे बस मेरा विश्वाश बहुत है ...
क्यों हों निराश-2जो कोयल इस बार न कूंकी बगिया में ,
गुजर गया ये मौसम तो क्या जीवन में मधुमाश बहुत है ..
मिट जाते हैं साक्ष्य मगर एह्शाश शेष रह जाते हैं .
खंडहरों से झांक रहा महलों का इतिहाश बहुत है ,
दर्द दबा लेना अन्तर में इतना सहज नहीं होता
साँझ dhale aksar हो जाता मेरा मन उदाश बहुत है..
खामोंशी की फांद दीवारें ,तन्हाई के सायों में..
डोर पकड़ सुपधियों के आता कोई मन के पास बहुत है ,
तुला हुआ जीवन वचनों में ,कदम बंधें संकल्पों में
kaise लौटूं अभी अयोध्या शेष अभी वन्वाश बहुत है ......
Copyright ©2008 vivek pandey

मृत्यु मेरी प्रेयशी



मृत्यु मुझे priya है...
एक सच्चे मित्र के रूप में..
स्वार्थी जीवन में.. निःस्वार्थ सहचर के रूप में..
पल-पल अनिश्चित इस सफ़र में ,
कम से कम मृत्यु तो निशचित है..
उसकी यही निश्चितता मुझे प्रिया है
इस सिमटी हुई दुनिया ,..में जहाँ कोई एक कदम भी साथ नही ...
चलता वहां अनंत यात्रा के ,...लिए मृत्यु एक निश्चल साथी ...
उसका यही निःस्वार्थ साहचर्य मुझे प्रिया है...
यहाँ बच्चे करते बटवारा माता पिता का ....
वहां मृत्यु पनाह देती हर प्राणी को...,
उसकी यही पनाह मुझे प्रिया है ..
जहाँ मैं पल में अशुरक्षित हूँ...
मन्दिर में.. मस्जिद में... गिरिजा में... यहाँ तक की माँ के गर्भ में भी....
वहां मृत्यु मुझे देती है, सुरक्षा चिरकाल तक....
इसिस्लिये मुझे वह प्रिया है..
मृत्यु मेरी प्रेयशी है ,.......
क्योंकि ----वो समाती है मुझे अपने आगोश में....
सुलाती है मुझे अपनी बाँहों में ....
हर पल एह्शाश है ...
सही ---है मार्ग भी दिखाती है ..
aour कई बार बिल्कुल करीब आकर लौट जाती है...
ओउर सताती है मुझे...
मेरी खुशी के लिए निर्धन एकांत करती है मेरा intjaar ...
bina कुछ शिकायत किए ..
ओउर अंत में अपनाती है मुझे ....
बिना किसिस शर्त के ...
बिना किसिस रश्म के....
बिना किसी रिवाज के .....
बिना किसिस बंधन के.....
इसिस्लिये मृत्यु मेरी प्रेयशी है...
इसिस्लिये मृत्यु मेरी प्रेयशी है .........
Copyright ©2008 vivek pandey

Monday, March 9, 2009

Indian lady


भारतीय नारी
कविता एक नयन
है कवि की कृतियों का उपवन
है इस उपवन की तू कोयलहै
जिससे पाश्चात्य संस्कृति अब भी ओझल
है जो मादकता फैलाती है
जो जीवन राह दिखाती है
जो अपनी प्यारी कंठ ध्वनि से जीवन राग सुनाती है
जो एक निर्लज्ज आवारें को भी कवि का दर्जा दिलवाती है,
जो कवि सा कोमल हृदय पाकर,
इच्छावों के पंख उडाता है
जो कविता की हर पंक्ति में तेरा नाम ही लाता है
आखिर अपनी मृदुल सारंगी से तुने उसको खींच लिया
अब वो तुझमे ही मतवाला है
तेरे जीवन का रखवाला है
क्योंकि - कविता एक नयन है..
कवि की कृतियों का उपवन है ..

विवेक ""उल्लू" पाण्डेय
भोपाल म.प्र.